तुलसीदास का जीवन परिचय | Tulsidas ka Jivan Parichay

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।
ये दोहा तुलसीदास जी के लिखे प्रसिद्ध दोहों में से एक है, जिसमें तुलसीदास जी कहते हैं कि, मीठे वचन बोलने से सब ओर सुख फैलाते हैं, किसी को भी वश में करने के लिए ये मीठे वचन ही एक मात्र मंत्र हैं, इसलिए मनुष्य को हमेशा चाहिए कि वह कठोर को छोड़कर मीठा बोलने का प्रयास करें। तुलसीदास जी का जीवन बहुत साधारण था, उन्होंने हमेशा अपने काव्यों से लोगों को जीवन जीने की सीख दी हैं, उनके लिखे ऐसे बहुत से दोहों हैं जिसमें उन्होंने हमेशा जीवन को जीने की सीख के साथ मनुष्य को अपने व्यवहार से किसी को कष्ट न हो ये भी बताया हैं। जीवन में उतर चढ़ाव तो आते ही रहते हैं लेकीन हमें हमेशा मेहनत और लगन के साथ अपना कार्य करते रहना है ये भी उनके काव्यों में लिखा है। तो आज के इसी आर्टिकल में हम आपको तुलसीदास का जीवन परिचय ( Tulsidas Biography in Hindi )से लेकर उनके द्वारा रचित काव्यों के बारे में बताएंगे
तुलसीदास का जीवन परिचय | Tulsidas ka Jivan Parichay
महाकवि गोस्वामी तुलसिदास जी का जन्म की तारीखों में कई विद्वानों की अलग अलग राय है, कुछ विद्वानों का मानना है कि इनका जन्म स्थान सूकर क्षेत्र जिसे गोंडा जिला के नाम से जाना जाता है, उसे मानते हैं। वोही कुछ का कहना है कि उनका जन्म “सवंत 1554 (1553ई)” को श्रावण शुक्ल पक्ष सप्तमी को चित्रकूट जिले के “राजापुर ग्राम” राज्य उत्तर प्रदेश को माना जाता है, और यही प्रचलित रूप से गोस्वामी जी का जन्म स्थल माना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी सरयूपारी ब्राम्हण थे, गोस्वामी तुलसीदास जी के पिता का नाम “आत्माराम दुबे” तथा माता का नाम “हुलसी देवी” था।
तुलसीदास जी के बचपन का नाम था रामबोला।
एक आम मानव का मां की कोख में तकरीबन 9 महीनों तक रहता है, लेकिन क्या आपको पता है तुसलीदास जी अपनी मां की कोख में तकरीबन 12 महीनों तक रहें और जब उनका जन्म हुआ तो उनके दांत भी निकले हुए थे। जन्म के बाद ही उन्होने मुख से बोला राम यानी राम नाम का उच्चारण किया और तभी इनके पिता जी ने इनका नाम रामबोला रख दिया।
कहा जाता है कि तुलसिदास जी के जन्म के अगले ही दिन इनकी मां का देहांत हो गया। इनके पिता जी ने किसी अनहोनी के घटित न होने का हवाला देते हुए इन्हें एक चुनिया नाम की दासी को सौंप दिया और स्वयं सन्यास धारण कर लिया। अब चुनिया ही रामबोला यानी तुसलीदास जी का पालन पोषण कर रही थी और जब रामबोला साढ़े पाँच वर्ष का हुए तो चुनिया भी चल बसी, अब रामबोला अनाथों की तरह जीवन जीने के लिए विवश हो गए थे।
रामबोला से तुलसीराम पड़ा नाम।
अब आप ये सोच रहे होंगे की इनका बचपन में नाम रामबोला था और फिर बाद में अनाथों की तरह अपना जीवन यापन करने लगे तो इनका नाम तुलसीदास किसने रखा फिर, दरअसल तुलसीदास जी जब गुरु नर हरिदास से मिले और बाद में इन्हें ही अपना गुरु मान लिया तो इनके गुरु जी ने ही इनका नाम बदलकर तुसलीराम कर दिया और इन्हे अपने साथ अयोध्या उत्तर प्रदेश ले गए।
इनके गुरु जी ने ही इनका “यज्ञोपवीत संस्कार करवाया जिसे उपनयन संस्कार के नाम से भी जाना जाता है, इसमें जनेऊ पहना जाता है और विद्यारंभ हो जाती है, इसमें मुंडन और पवित्र जल से स्नान कर के संस्कार होते हैं। इस संस्कार के बाद व्यक्ती सूत से बना वह पवित्र धागा जिसे यज्ञोपवीतधारी कहा जाता है, उसे व्यक्ति अपने बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है।”
तुलसी राम जी ने संस्कार के समय बिना कंठस्थ किए गायत्री मंत्र का स्पष्ट उच्चारण किया। यह देख सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए। तुलसी राम जी काफी तेज बुद्धि थे, वे जो भी मंत्र एक बार सुन लेते थे तो उन्हें कंठस्थ हो जाता था।
विवाह के पश्चात् तुसलीराम से तुसलीदास कैसे बने, गोस्वामी तुलसीदास जी
जब तुसलीराम यानी तुसलीदास जी 29 वर्ष के हुए तो इनका विवाह यमुना के पार रत्नावली नाम की एक सुंदर कन्या से इनका विवाह हो गया था। पहले के समय में लड़कियों की छोटी उम्र में शादी कर दी जाती थी और लड़की की विदाई नही होती थी, लेकीन जब लड़की सयानी हो जाती थी तब उसकी बिदाई की जाती है और इस बिदाई रस्म को गौना बोलते हैं।
यही वजह थी, कि तुलसीदास जी का गौना न होने की वजह से वो कुछ समय के लिए काशी चले गए थे, काशी में रहकर वो वेद वेदांग के अध्ययन में जुट गए थे, अचानक एक रात्रि उनको अपनी पत्नी रत्नावली की याद सतायी और वह व्याकुल होने लगे थे। इसके बाद उन्होंने अपने गुरु से आज्ञा लेकर राजापुर के लिए निकल पड़े।
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रत्नावाली अभी भी अपने मायके में ही रहती थी क्योंकि अभी उनका गौना नहीं हुआ था। रात काफ़ी हो चुकी थी और उसी अंधेरी रात में तुसली जी यमुना को तैरकर पार करते हुए राजापुर पहुंचे, वहां पहुंचे तो उनके घर के सभी लोग सो चुके थे, इससे बाद तुलसी जी सीधे अपनी पत्नी के कक्ष यानी कमरे में चले गए। अधि रात को तुसली जी को अपने कमरे में पाकर उनकी पत्नी ने उन्हें लोक-लज्जा के भय से वापस चले जाने के लिए आग्रह किया, उनकी पत्नी रत्नावली स्वरचित यानी अपने लिखे एक दोहे के माध्यम से उनको ये शिक्षा देने लगी।
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत।।
इस दोहे का अर्थ कुछ इस प्रकार है, जिस प्रकार तुम्हे मेरे इस हाड़ मांस के देह यानि शरीर से इतना प्रेम है, अगर इतना ही प्रेम तुमने प्रभु राम से किया होता तो जीवन में कोई भय भीत न होता और तुम्हारा जीवन सुधार जाता।
ये दोहा सुनकर तुलसी जी आश्चर्यचकित रह गए और उनका अंतर्मन जग उठा वो एक पल भी वहां नहीं रुके और अपनी पत्नि का त्याग करते हुऐ, तुलसी राम से तुलसीदास बन गए, उन्होने सन्यास ग्रहण कर लिया और भगवान राम की कथा सुनने लगे। इसी के बाद 1582 ईसवी में इन्होंने श्री रामचरितमानस लिखना प्रारंभ किया और 2 वर्ष 7 महीने 26 दिन में यह ग्रंथ संपन्न हुआ।
जब प्राप्त हुए भगवान श्री राम के दर्शन।
तुलसी दास जी हनुमान की बातों का अनुसरण करते हुए चित्रकूट के रामघाट पर एक आश्रम में रहने लगे थे। उस समय संवत् 1607 की मौनी अमावश्या को बुधवार के दिन उनके सामने भगवान श्रीराम पुनः उन्होंने बालक रूप में आकर तुलसीदास से कहते हैं, बाबा हमें, हमें चंदन चहिए क्या आप हमें देंगे।
तुसलीदास जी फिर से कही भगवन को पहचान न पाए इसलिए वही पर वो इस दोहे को गाते हुए कहते हैं कि
चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।
तुलसिदास चन्दन धीसें, तिलक देत रघुबीर॥
माना जाता है यहीं उन्हें श्रीराम जी के दर्शन प्राप्त हुए थे, इन सभी घटनाओं का उल्लेख उन्होंने यानि तुलसीदास जी ने गीतावली में भी किया है।
तुलसीदास जी की मृत्यु कब हुई थी?
कहा जाता है कि उन्होने अपनी आखिरी कृति विनयपत्रिका को लिखा और 1623 ई. में श्रावण मास तृतीया को राम का नाम लेते हुऐ अपने शरीर का परित्याग कर दिया और ब्रह्म लीन हो गए।
महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी की रचनाएं
- श्री रामचरितमानस
- कवितावली
- दोहावली
- विनय पत्रिका
- रामलला नहछू
- जानकी-मंगल
- रामज्ञा
- वैराग्य-संदीपनी
- पार्वती-मंगल
- कृष्ण-गीतावली
- बरवै रामायण
- गीतावली
निष्कर्ष
आप ने आज के इस आर्टिकल मे देखा कि तुलसीदास का जीवन परिचय के बारे मे जिनसे से आपको काफी सिखने को मिलेगा और आप को हमारा यह आर्टिकल अच्छा लगा हो तो इसको शेयर करना मत भूले