Premchand Biography in Hindi | मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

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प्रेमचंद का जीवन परिचय ( Premchand ka Jivan Parichay )
Munshi Premchand in Hindi : हमारे भारत देश की शान मुंशी प्रेमचंद एक महान साहित्य कवी और लेखक थे। प्रेमचंद जी ने हिंदी, उर्दू और फ़ारसी भाषा में बहुत सारी उपन्यास , कविता, कहानी और नाटक लिखे थे जो की उस समय काफी प्रचलित हुए।
मुंशी प्रेमचंद का जन्म साल 1880 में उत्तरप्रदेश के वाराणसी जिले के लमही ग्राम में हुआ था। उन्हें बचपन में धनपत राय के नाम से जाना जाता था। उनके पिता का नाम अजायब राय था जो पोस्ट ऑफिस क्लर्क की नौकरी करते थे और उनकी माता का नाम आनंदी देवी था जिनसे प्रेमचंद का काफी लगाव रहा।
मुंशी जी का शिक्षण महज 7 वर्ष से शुरू हुआ और उन्होंने लालपुर गांव में मदरसे के पास उर्दू और फ़ारसी भाषा सीखी। मुंशी जब सिर्फ 8 वर्ष के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया और वह अपने दादा दादी के पास बड़े हुए। मुंशी जी के पिता ने दूसरी शादी कर ली जिससे मुंशी जी काफी अकेले हो गए और माँ को खोने की पीड़ा उनकी रचनाओं में भी उन्होंने कई जगह वर्णन किया है। अपनी माता को खोने के बाद उन्होंने किताबो में अपना अकेलापन दूर किया और काफी रूचि के साथ वह किताबो को पढ़ने लग गए ।
मुंशी प्रेमचंद का लेखन प्रारम्भ
मुंशी जी ने स्कूलिंग करने के लिए एक मिशनरी स्कूल में प्रवेश लिया और वहां पर उन्होंने अंग्रेजी भाषा भी सीखी। गोरखपुर शहर में उन्होंने अपना साहित्य लेखन की शुरुवात की। अपनी लिखी हुई साहित्य में वह सामाजिक यर्थात्वाद के बारे में काफी लिखते थे, सामाजिक परेशानी, और महिलाओं के स्थिति पर काफी लेखन लिखते थे। जब उनके पिता का ट्रांसफर जामनिया प्रान्त में हो गया तब उन्होंने बनारस के क्वींस कॉलेज में दाखिला किया जहा उनकी स्कूलिंग कराइ गई ।
साल 1897 में ही मुंशी जी की शादी करा दी गई जब वह केवल 15 वर्ष के थे। यह शादी उनकी ज्यादा चल नहीं पाई क्यूंकि घर की जिम्मेदारी देख उनकी पत्नी और उनके बीच लड़ाइयां होती थी और उनकी पत्नी एक बार झगड़कर घर छोड़कर चली गई और फिर लौटी ही नहीं। साल 1906 में मुंशी जी ने एक विधवा से दूसरी शादी कर ली और फिर दो बच्चों के पिता बन गए।
मुंशी प्रेमचंद की अध्यापक कैसे बने
मुंशी जी के पिता के देहांत के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उनपर आ गई जिसके वजह से उन्हें पढाई रोकनी पढ़ी । एक अधिवक्ता के बेटे को उन्होंने पढ़ाना शुरू किया और उन्हें ट्यूशन फीस रूपए प्रति माह मिलना शुरू हो गया। कुछ ही महीने में उन्हें 18 रूपए प्रति माह के पगार में एक शिक्षक की नौकरी मिल गई। साल 1900 में उन्हें सरकारी जिल्ला स्कूल, बहराइच में सरकारी नौकरी मिल गई एक सहायक अध्यापक के तौर पर जहा उन्हें प्रति माह २० रूपए मिलने लगे। तीन साल बाद उन्हें प्रतापगढ़ के जिला पाठशाला में ट्रांसफर मिला। इसके बाद मुंशी जी प्रशिक्षण हेतु प्रतापगढ़ से इलाहाबाद चले गए और 3 साल तक वही थे।
मुंशी प्रेमचंद जी का उपन्यास लेखन कार्य
सबसे पहला उपन्यास मुंशी जी ने हिंदी में लिखा “भगवान् के निवास का रहस्य” जिसे उन्होंने बाद में उर्दू भाषा में भी लिखा “असरार ऐ मबिड”। इसे प्रेक्षण करने के उद्देश्य से वह इलाहाबाद से कानपूर आ गए जहा उनकी मुलाकात श्री दया नारायण निगम से हुई जो की पत्रिका नामक के एक पत्रकार थे। इसी पत्रिका में मुंशी जी ने अपनी लेख और कहानियाँ प्रकशित की। साल 1907 में उन्होंने अपना दूसरा लघु उपन्यास “हमखुर्मा – ओ- हमस्वाब” प्रकाशित की। इसके अलावा “कृष्ण”, “रूठी रानी “और सोज – ऐ – वतन आदि लघु उपन्यास लिखी। साल 1909 में उन्हें उप निरक्षक के रूप में हमीरपुर और महोबा नामक स्कूलों में नियुक्त किया था। तब एक ब्रिटिश कलेक्टर ने उनके “सोज -ऐ -वतन ” को छापेमारी करके लगभग 500 प्रतिया जला दी। इसी कारण उन्होंने अपना नाम नवाब राय से प्रेमचंद में बदल दिया था। इसके बाद साल 1914 में उन्होंने स्पष्ट लेखन हिंदी में लिखना शुरू कर दिया था।
मुंशी प्रेमचंद का हिंदी लेखन
साल 1915 में उन्होंने सबसे पहला हिंदी लेखन “सौत” सारस्वत मैगज़ीन द्वारा प्रकाशित कराया। गोरखपुर में रहकर उन्होंने कई पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया , इसके अलावा लेखन के साथ साथ वह सहायक अध्यापक की नौकरी भी कर रहे थे। साल 1917 में “सप्त सरोज” नामक हिंदी लेख प्रकाशित किया। साल 1919 में पहला हिंदी उपन्यास “सेवा सदन ” नामक लेखन जिसका मूल भाषा उर्दू तथा शीर्षक बाजार -ऐ – हुस्न था इसे प्रकाशित कराया। साल 1921 में मुंशी जी ने अपनी बैचलर ऑफ़ आर्ट्स की डिग्री पूर्ण की और उप निरक्षक के रूप में अपना पद बढ़ाया।
मुंशी प्रेमचंद की साहित्यिक जीवन
साल 1921 तक उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी इस्तीफा कर ली और मूल ध्यान अब अपने साहित्य लेखन पर देने लग गए थे। साल 1923 में मुंशी ने सारस्वत प्रेस नाम से अपना खुद का प्रिंटिंग और पब्लिशिंग हाउस स्थापित किया। अपने साहित्य रचनाओं जैसे “रंगभूमि”, “निर्मला”, “प्रतिज्ञा”, “गबन”, “हंस”,”जागरण” जैसे लेखन अपने प्रेस के जरिये प्रकाशित किया। साल 1932 में “कर्मभूमि” नामक उपन्यास प्रकाशित की। काशी के विद्यापीठ में उनके लेखन और कार्यो से प्रभावित होकर उन्हें हेडमास्टर की नौकरी दी गई और बादमे लखनऊ में माधुरी पत्रिका के संपादक के तौर पर उन्होंने काम किया। साल 1934 में बॉम्बे जाकर उन्होंने हिंदी फिल्म उद्योग में एक फिल्म के लिए कथा लेखन लिखा और यह फिल्म का नाम था “मजदुर” और इन्होने इस फिल्म में एक छोटा सा भूमिका भी निभाई। उन्हें फिल्म लेखन इतना पसंद नहीं आया और फिर दोबारा साल 1936 में वह लखनऊ आ गए।
मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु
साल 1936 8 अक्टूबर को मुंशी जी की तबियत बिगड़ी और वह चल बसे। उनके मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने उन पर एक किताब लिखी जिसका नाम “प्रेमचंद” था।
मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय से जुड़े कुछ FAQs :
मुंशी जी के नाटक कोनसे है
8 चर्चित नाटक है “संग्राम” साल 1923 में, “कर्बला” साल 1924 में और “प्रेम की वेदी” साल 1933 में लिखी गई थी।
मुंशी प्रेमचंद जी की लोकप्रिय साहित्यिक रचनाए कौन से है
“गोदान”, “निर्मला”, “कफ़न”, “पूस की रात ” इनकी सर्वश्रेष्ठ रचनाएँ है।
मुंशी प्रेमचंद ने कितनी लेखन कार्य किये है
प्रेमचंद जी ने 14 उपन्यास, 300 से अधिक कथाएँ , नाटक, अनुवाद लिखी है। हिंदी लेखन के अलावा उन्होंने उर्दू , फ़ारसी भाषाओ में भी कई रचनाएँ की है।
मुंशी प्रेमचंद की कुछ उपन्यास लेखन कौन से है
“वरदान”, “किशना”, “रूठी रानी”, “रंगभूमि”, “कायाकल्प”,”प्रतिज्ञा”,”मंगलसूत्र”, “गोदान” यह कुछ सक्षम कार्य है।
निष्कर्ष
हमें आशा है आपको हमारे इस पोस्ट “मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (munshi premchand biography in hindi)” में उपर्युक्त जानकारी हासिल हुई होगी। हमारे इस पोस्ट पर आपके विचार आप इस पोस्ट के नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स पर जरूर लिख सकते है। अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया हो तो जरूर इसे लाइक और शेयर करियेगा, इससे हमें और अच्छे आर्टिकल्स लिखने की प्रेरणा मिलेगी। हमारे हिंदी टॉप वेबसाइट पर इसी तरह नए आर्टिकल्स हम आपके लिए लाते रहेंगे। हमारे आर्टिकल पर हमारे साथ अंत तक जुड़ने के लिए धन्यवाद।