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कागज़ का अविष्कार किसने किया और कब

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हेलो दोस्तों , आज हमारे आर्टिकल में कागज़ का अविष्कार किसने किया जानकारी हम आपको देंगे। प्राचीन काल में कागज़ के अविष्कार से पहले लोग पत्तों पर, पत्थरों पर , सिक्कों पर, जानवरो के चमड़े पर लिखा करते थे। कागज़ यानि पेपर का इस्तेमाल हर कोई कर रहा है चाहे वो स्कूल में हो, कॉलेज में हो, बैंक्स में हो या काम में हो। भले ही आज का ज़माना इंटरनेट और टेक्नोलॉजी का हो लेकिन कागज़ के इस्तेमाल ने अपनी पक्कड़ बनाई रखी है। कागज़ का सबसे पहला उपयोग अगर कहे तो पैसा बनाने में है , जी हाँ पैसे की गड्डी की बनी नोट भी कागज़ का कमाल है, इसके अलावा किताबें , डाक्यूमेंट्स, रसीद, पेपर बैग, टिश्यू पेपर यह सब कागज़ से ही बनी है।

कागज़ किसे कहते है

पौधे या पेड़ की कौशिकाए में सेल्यूलोस नामक पदार्थ पाया जाता है। इन पेड़ो के ऊपरी भाग को निकलकर जिसमे सेल्यूलोस मौजूद है। उसे कागज़ मशीन में केमिकल्स के साथ ग्राइंड करके एक शीट में सुखाया जाता है। सूखने के बाद यह एक सफ़ेद पतली चद्दर जैसे दिखने लगती है, इसे ही अलग अलग ढांचे में डालकर कई प्रकार के कागज़ तैयार होते है। सेल्यूलोस कॉटन में भी पाई जाती है, लेकिन इनसे बनी कागज़ काफी मेहेंगी पड़ती है।

कागज़ का आविष्कार किसने किया | kagaj ka Avishkar kisne kiya

कागज़ का अविष्कार चीन में हुआ था 105 AD में। कागज़ का आविष्कार चाय लुन नामक व्यक्ति ने किया जो उस वक़्त बादशाह के मुख्या अधिकारी थे। चाय लुन ने अपने घर का निर्माण पेड़ो की टहनियों से बनाई थी , बनाते वक़्त चाय लुन को कागज़ बनाने का सुझाव आया। उसने हेम्प के पौधे का इस्तेमाल किया जिसमे उसने पौधे के ऊपरी भाग को लेकर पानी मिलाकर एक गाढ़ा सा मिश्रण तैयार किया, फिर इसे छन्नी में डुबाकर, एक रेशम चमकीली सी उस छन्नी में परत जम गई। इस परत को सूखने के बाद कागज़ का निर्माण हुआ। यह अविष्कार की खबर उस समय साशन करने वाले हर राजा तक पहुंची। बस सभी ने अलग पेड़ो को इस्तेमाल कर कई तरह के कागज़ का निर्माण किया।

कागज़ का इतिहास क्या है

अर्चिअलोजिकल यानि पुरातात्विक की खोज में यह भी बताया गया है की करीबन 3500 BC में भी कागज़ की खोज की गई थी। उस समय इजीप्ट में पेपिरस नाम के पौधे का उपयोग कर मिश्रण तैयार किया गया था जो सूखने पर कागज़ की तरह लगता। उस समय वह के लोग इसी प्रकार पौधे से कागज़ को तैयार करते और उसी पर लिखकर सुचना पहुंचाने का काम करते। कहाँ जाता है पेपिरस के पौधे के नाम से ही पेपर नाम की शुरुवात हुई

लेकिन आज भी कागज़ का योगदान चाय लुन को ही माना गया है। चीन के लोगो ने इस अविष्कार को बहुत सालों तक छुपाके रखा था, वो यह रहस्य कसीको बताना नहीं चाहते थे।।

6 वि सदी में एक साधु के जरिये जापान तक कागज़ का रहस्य पहुँचा। उसी प्रकार चीन और कोरिया में व्यापार के चलते यह खबर कोरिया में भी लहर की तरह फ़ैल गई।

तलाश की युद्ध में अरब और चीन में 751 AD में घमासान युद्ध छिड़ गया था ,उस समय चीन हार गई और कई सैनिकों को अरब सैनिको ने अपने हित में ले लिया था। उस समय कैदियों को रिहाई के बदले अरब वासियों को कुछ चीन की गुप्त खबरें बतानी पड़ती थी। इसी कारण एक कैदी ने कागज़ बनाने की कला को अरब देश तक पंहुचा दी थी। सबसे पहले अरब में कागज़ बनाने का खरखाना समारखंड में बना। 10वी सदी तक हर अरब वासी कागज़ का इस्तेमाल करने लगा।

11वि सदी में यूरोप के शहर स्पेन में कागज़ का पहला कंपनी बना, और यही से इटली, जर्मनी में इस आविष्कार की लहर फ़ैल गई।

भारत में सबसे पहले कागज़ का प्रयोग और निर्माण हुआ 14वि सदी में सिंधु सब्यता के दौरान हुआ था। पहले कारखाना बना कश्मीर शहर में। भारत में 7वि सदी से ही कागज़ के इस अविष्कार की भनक लग गई थी , लेकिन उस समय कागज़ का उपयोग उतना नहीं हुआ क्यूंकि प्राचीन भारत में ताड़पत्र में लिखने की कला काफी पुराणी थी और नए निर्माण का स्वीकार देश में काफी देर से हुआ । 12वि सदी के बाद कागज़ की उपयोग पुरे दुनिया में आग की तरह फैल गई। आधुनिक तकनीक की कागज़ बनाने वाली मशीन का कारखाना निर्माण हुआ साल 1870 में कोलकत्ता के निकट बाली स्थान पर। इसके बाद एक एक करके नए नए कारखाने तैयार हुए बंगाल में साल 1887 में , जगाधरी में साल 1925 में, साल 1933 गुजरात में लगाए गए।

कागज़ का निर्माण कैसे किया जाता है

सबसे पहले पेड़ के ऊपर के छिलके को निकाला जाता है। इसके बाद क्लीनिंग मशीन में डालकर साफ़ किया जाता है , बाद में पेड़ के टुकड़ो को छोटे छोटे टुकड़े में काट दिया जाता है।

डाइजेस्टर चैम्बर – पेड़ों के छोटे छोटे टुकड़ो को अब डाइजेस्टर चैम्बर में कन्वेयर बेल्ट के द्वारा अंदर लिया जाता है। इस चैम्बर में मात्रा के अनुसार एसिड सलूशन मिलाया जाता है। नीचे के तरफ एक फ़िल्टर पाइप मौजूद होता जहा से लिगींण कचरा बाहर की तरफ निकल जाता है। फिर बाद में लकड़ी के टुकड़ों को फिर से साफ़ किया जाता है।

ब्लीचिंग चैम्बर – साफ़ होने के तुरंत बाद यह टुकड़े ब्लीच होते है जहाँ टुकड़े पहले से सफ़ेद दीखते है

कैल्शियम कार्बोनेट – इन टुकड़ो को ब्लीच होने के बाद कैल्शियम कार्बोनेट के मिश्रण में डुबाया जाता है और इन टुकड़ो को और भी सघन बनाया जाता है।

पल्प मिक्सर – सघन टुकड़ो को पल्प मिक्सर में पानी के साथ मिक्स किया जाता है , जिससे यह टुकड़े और भी पतले हो जाते है। इसी मिश्रण से पल्प यानि कागज़ का निर्माण होता है।

पेपर मशीन – पल्प मिश्रण को पेपर मशीन में डाल दिया जाता है , जहाँ कागज़ के लम्बे परत का निर्माण होता है। फिर इन पतले परत को ड्रायर में सुखाकर कागज़ तैयार हो जाता है। बाद में इसे आवश्यक अनुसार आकार दिया जाता है। इसी प्रकार नोटबुक, मैगज़ीन, अखबार , पैकिंग बैग जैसे तरह तरह के विभिन्न कागज़ बनाए जाते है।

पेपर का वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है

जिस तरह आज के आधुनिक काल में बिल्डिंग्स बनाने के लिए वनो की कटाई हो रही है , उसी प्रकार कागज़ बनाने के लिए रोज़ लाखो पेड़ो की कटाई हो रही है , जिससे वातावरण में प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है । 35% जो पेड़ो की कटाई हो रही है वह पेपर के निर्माण में जाती है। उसी प्रकार कागज़ को सफ़ेद करने के लिए क्लोरीन का इस्तेमाल होता है जो हमारे वातावरण को काफी प्रदूषित करता है।

वातावरण से चिंतित स्वयं पेपर कंपनियों ने वनो को फिर से वन्य करने का आश्वासन दिया है। कागज़ के निर्माण से लोगो का जीवन आसान हो गया है और आज के डिजिटल दुनिया में भी कागज़ के व्यापार में कोई कमी नहीं आई है। कागज़ का उपयोग स्कूल्ज , कॉलेजेस , व्यापार में कभी कमी नहीं होगी क्यूंकि लिखित रूपी साधन हमारे जीवन एक आवश्यक और मूल भाग है।

निष्कर्ष

कागज़ का अविष्कार किसने किया आर्टिकल से अंत तक जुड़ने के लिए धन्यवाद्। हमे आशा है आपको हमारी दी गई जानकारी से काफी लाभ हुआ हो। हम आपसे फिर मिलेंगे कुछ नए आर्टिकल्स और जानकारी सहित.


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sona arumugam

मेरा नाम सोना अरुमुगम है , पेशे से इंजीनियर👩‍💻 दिल से लेखक हुँ।❤✍ मेरे ब्लॉग सिर्फ शब्द नहीं हैं वो मेरे विचार हैं📖💫 मैं सुरत शहर से ताल्लुक रखती हूं ।

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